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बारह मुखी रुद्राक्ष के लाभ/12 Mukhi Rudraksha Benefits
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बारह मुखी रुद्राक्ष के लाभ/12 Mukhi Rudraksha Benefits

बारह मुखी रुद्राक्ष के लाभ (12 Mukhi Rudraksha Benefits): यह रुद्राक्ष भगवान विष्णु का स्वरूप समझा जाता है, 12 मुखी रुद्राक्ष का संबंध भगवान विष्णु के बारह अवतार से है, इसे प्राप्त करना अति दुर्लभ माना जाता है। इसे अन्नपूर्णा युक्त रुद्राक्ष माना जाता है, इसके धारण करने से शस्त्र आदि का भय नहीं रहता और उस पर किसी प्रकार का तान्त्रिक प्रभाव कार्य नहीं करता, इस रुद्राक्ष को सूर्य का अवतार भी कहा गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से धर्म, अर्थ,काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है, उसके चेहरे का तेज और ओज हमेशा बनता रहता है। शक्तिहीनता की स्थिति में यह रुद्राक्ष जीवन-भर धारण करना चाहिए। भव्य एवं आकर्षक व्यक्तित्व की रक्षा के लिए इसे धारण करना चाहिए।

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बारह मुखी रुद्राक्ष का आध्यात्मिक महत्व (12 Mukhi Rudraksha Benefits):

बारह मुखी रुद्राक्ष (12 Mukhi Rudraksha Benefits) को द्वादश ज्योतिर लिंगों का स्वरूप बताया गया है, इस रुद्राक्ष को धारण करने से चारो धाम एवं बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का फल प्राप्त होता है।

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बारह मुखी रुद्राक्ष के स्वास्थ्य लाभ:

इस रुद्राक्ष को मधु के साथ घिस कर सेवन करने से लीवर सम्बंधित सभी रोगों में लाभ मिलता है,पेट की किसी भी समस्या के लिए यह रुद्राक्ष परम उपयोगी है।

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बारह मुखी रूद्राक्ष को धारण करने का मंत्र:

प्रत्येक रुद्राक्ष को सिद्ध करने का एक विशिष्ट मन्त्र होता है, जिससे रूद्राक्ष सिद्ध होकर अपना पूरा प्रभाव दिखा सके, रुद्राक्ष पर बिना मंत्र जप किया या सिद्ध किये धारण करने से, पूर्ण फल प्राप्ति नही होती, बारह मुखी रुद्राक्ष  धर्म, अर्थ,काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए सिद्ध किया जाता है। निम्न मन्त्र का सवा लाख मंत्र जाप करने से बारह मुखी रुद्राक्ष (12 Mukhi Rudraksha Benefits) सिद्ध होता है, यह मंत्र किसी योग्य ब्रहामण से जाप करवा कर धारण करे या किसी ऐसी संस्थान से खरीदें, जहां से मंत्र जाप और सिद्ध किया प्राप्त हो सके।

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विनियोग:

ॐ अस्य श्री सूर्य मन्त्रस्य भार्गव ऋषि: गायत्री छन्द: विशेश्वरो देवता ह्रीं बीजं, श्री शक्ति: घृणि: कीलंक, रुद्राक्ष धारणार्थे जपे विनियोग: ।

ध्यान:

शोणांभोरुहसंस्थितं त्रिनयनं वेदत्रयी विग्रहं ।
दानांभोजयुगाभयानि दधतं हस्तै: प्रबाल प्रभम् ॥
केयुरांगदकंकणद्वयधरं कर्णैर्लसत्कुण्डलं ।
लोकोत्पत्तिदिनाशपालनकरं सूर्यं गुनाध्रिं भजेत् ॥

मन्त्र :                 

॥ ॐ ह्रीं क्षौं घृणि: श्रीं ॥
॥ Om Hreem  Shom Ghrani Shreem॥

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