यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन का जन्मा हुआ पुत्र बड़ा प्रतापी एवं बुद्धिमान् होता है। वह अपने पिता के असम्भव कार्य को भी सरल बना देता है।
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बुधवार व्रत की पूजा विधि:
बुधवार को स्नानादि से निवृत होकर महादेव का पूजन यथाविधि करना चाहिए। इस दिन हरी वस्तुओं का भोग दिन में एक बार करना चाहिए। इन्हीं का ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
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पौराणिक कथा:
एक वैश्य परिवार था। उसका मुखिया वाणिज्य व्यापार हेतु दूर-दूर तक जाया करता था। एक बुधवार को उसकी अनुपस्थिति में उसकी पत्नी ने सुंदर शिशु को जन्म दिया। मुखिया को विदेश में फिरते हुए बारह वर्ष बीत गए। इस समय में उसने खूब पैसा कमाया। जब उसे घर की याद आई तो वह श्रम से कमायी सम्पत्ति को गाड़ियों में भरकर घर की ओर चल दिया। जब वह अपने गाँव के पास पहुँचा तब एक स्थान पर उसकी गाड़ियाँ अटक गई। उसने गाड़ी चलाने के लिए यथासम्भव प्रयास किए पर बैल अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हटे। अन्त में उसने आस-पास के गाँवों से बड़े-बड़े पंडितों को बुलाकर उनसे उपाय करने के लिए कहा।
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सभी ने विचार करके कहा, “यदि बुधवार के दिन का उत्पन्न हुआ कोई बालक गाड़ियों को हाथ लगा दे तो सम्भव है कि गाड़ियाँ चल जाएँ।” इतना सुनकर वह वैश्य व्यापारी अपने ही गाँव में जाकर पूछने लगा कि बुधवार के दिन किसी के बेटे ने जन्म लिया है। एक वृद्धा ने कहा, अरे तेरा बेटा ही बुधवार के दिन पैदा हुआ है। उसी को जाकर बुला ले। उस वृद्धा के कहने से वह अपने घर की ओर चला गया द्वार पर पहुंचकर उसने देखा कि एक सुन्दर बालक खेल रहा है।
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उसने उस बालक से पिता का नाम पूछा। उस बालक ने उसी का नाम बताया। यह सुनकर वह व्यापारी बोला, “बेटा मैं ही तुम्हारा पिता हूँ। मेरी गाड़ियाँ अटक गई हैं, उन्हें चलकर हाथ लगा दो।” वह लड़का तुरंत पिता के साथ चला गया। उसने ज्यों ही गाड़ियों को हाथ लगाया त्यों ही वे चलने लग गई। घर पहुंचकर उस वैश्य व्यापारी ने बहुत खुशियाँ मनायीं। पुत्र के सब संस्कार पूर्ण कराये और बहुत – सा दान पुण्य किया। उसी समय से स्त्रियों में बुधवार का व्रत करने की परिपाटी चली आ रही है।