यह व्रत शनि ग्रह, शनि साढ़े साती समय के प्रकोप को दूर करने के लिए किया जाता है।
शनिवार व्रत की पूजा विधि:
इस दिन शनि की पूजा की जाती है। शनि देव को काला तिल, काला वस्त्र, लोहा, तेल और काली उड़द विशेष रूप से प्रिय हैं। शनि स्तोत्र का पाठ करके इन्हीं चीज़ों का व्रत करने वाले को (व्रती) दान करना चाहिए।
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पौराणिक कथा:
योगिराज श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मणी थी। रुक्मणी की अनुजा बड़ी ही कर्कशा और कुप्रवृति की थी। इसी कारण कोई भी युवराज उसके साथ विवाह करने के लिए तैयार नहीं था। एक दिन रुक्मणी ने योगिराज श्रीकृष्ण से अपनी अनुजा के विवाह के लिए प्रार्थना की। शनिवार व्रत की विधि
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योगिराज श्रीकृष्ण ने उस कुलक्ष्मी का विवाह एक मुनि के साथ करा दिया। वह मुनि ज्ञानी-ध्यानी महात्मा था। उसका अधिकांश समय जप-तप में बीता करता था। इस कारण कुलक्ष्मी को अपने पति के साथ क्लेश करने का मौका ही नहीं मिलता था। किन्तु जब उसका पति संध्या समय और सवेरे ईश्वर आराधना के बाद शंख बजाता तब कुलक्ष्मी धाड़ मारकर रोया करती थी। इस बात से पति को बड़ा दुःख होता था। शनिवार व्रत की विधि
एक दिन मुनि ने कुलक्ष्मी से पूछा, “देवी। तुम्हें क्या अच्छा लगता है? जिस चीज़ में तुम्हारा मन लगे मैं उसी का प्रबंध कर दूं।”
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कुलक्ष्मी ने कहा, “स्वामी। मुझे तुम्हारे सभी कामों से घृणा है। पितृ पूजा, देवार्चन, दान-पुण्य, होम-जप और यज्ञादि कर्मों में मेरी तनिक भी रूचि नहीं है। मुझे तो हर समय का क्लेश अच्छा लगता है। जीवों को उत्पीड़ित व सन्तप्त देख कर मुझे अंत्यत हर्ष होता है।”
पत्नी की बात सुनकर मुनि ने कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें ऐसी ही जगह पर पहुंचा देता हूँ जहाँ पर तुम्हारा जी लग जाएगा।”
कुलक्ष्मी खुशी-खुशी अपने पति के साथ चली गई। मुनि उसे लेकर सघन वन में पहुँचा। वहाँ सबसे ऊँचा पीपल का पेड़ देखकर कुलक्ष्मी को उसकी शाखा पर बैठा दिया और स्वयं आश्रम को लौट गया।
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अर्द्ध रात्रि को कुलक्ष्मी रोने लग गई। उस समय रुक्मणी अपने पति को भोजन करा रही थीं। अपनी बहन का रोना सुनकर उन्होंने पति को उलाहना देते हुए कहा, “आपने कुलक्ष्मी की अच्छी जगह शादी करायी है। वह मुनि उसे कहाँ जंगल में छोड़ आया है। सुनिए, बेचारी कैसा विलाप कर रही है।” शनिवार व्रत की विधि
योगिराज श्रीकृष्ण बोले, “देवी। तुम्हारी बहन पूरी कंकाली है। वह अपने पति के भजन-पूजन में विघ्न डालती होगी। इसी करण उसके पति ने उसे निकाल दिया होगा। इस जगत् में भले के साथी तो सब होते हैं पर बुरे का साथी कोई नहीं होता है।”
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तब रुक्मणी ने फिर प्रार्थना की, “अब उसका निर्वाह कैसे हो? इसका भी तो कोई उपाय कीजिए।”
रुक्मणी की बात सुनकर श्रीकृष्ण उसी समय उस स्थान पर गए जहाँ पर कुलक्ष्मी पीपल के पेड़ पर बैठ रो रही थी। वहां पर पंहुचकर उन्होंने पूछा,” तुम इस समय यहाँ पर बैठी क्यों रो रही हो?”शनिवार व्रत की विधि
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कुलक्ष्मी ने कहा, “मुनि देव मुझे बैठाकर चले गए हैं। यहाँ अकेली बैठे-बैठे जी घबरा रहा है। इसलिए विलाप कर रही हूँ।”
सुनकर श्रीकृष्ण बोले, “तुम मुनि को परेशान करती होगी। उनके जप-तप में बाधा डालती होगी। इसी कारण उन्होंने तुम्हारा त्याग किया है। मैं अब मुनि को समझा नहीं सकता हूँ। पर तुम इस बात के लिए तैयार हो जाओ कि भविष्य में अपने पति के प्रतिकूल आचरण नहीं करोगी तो कुछ सोचा जा सकता है।” शनिवार व्रत की विधि
इतना सुनकर कुलक्ष्मी बोली, “मुझे आपकी सब बातें स्वीकार है, पर मैं अपनी प्रकृति से विवश हूँ।”
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इस पर श्रीकृष्ण बोले, “ऐसी कलहकारिणी के लिए एकांतवास से अच्छा और कोई उपाय नहीं हो सकता है। इसलिए मेरी आज्ञा है कि अब तुम हमेशा इसी पीपल पर वास करो। इसमें सम्पूर्ण देवताओं का वास है। मेरी अर्द्धांगिनी लक्ष्मी का भी इसी में वास है। शनिवार के दिन सूर्योदय से पूर्व जो कोई पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा, वह लक्ष्मी जी को पहुंचेगा किन्तु जो सूर्योदय के बाद पीपल का पूजन करेगा वह पूजन तुम्हें अर्पित होगा, पुन: जिनकी पूजा तुम्हें मिलेगी उन्हीं के घर में तुम्हारा वास होगा। इतना कहकर श्रीकृष्ण लौट गए। शनिवार व्रत की विधि
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