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सोमवार व्रत की कथा (Somvar Vrat Ki Vidhi)
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सोमवार व्रत की कथा (Somvar Vrat Ki Vidhi)

यह सौभाग्यवती स्त्रियों का व्रत है। यह सुहाग को बनाए रखने के लिए हर सोमवार को किया जाता है।

सोमवार व्रत करने की विधि:

यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियाँ सोमवार को करती हैं। इस दिन एक ही बार आहार लेने का विधान है। इस दिन शिव पार्वती का यथाविधि पूजन किया जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन व्रत करने वाली महिलाएँ पीपल या तुलसी की एक सौ आठ परिक्रमाएँ करती हैं। इनकी गणना के लिए वे लडडू, छुहारा, आम, अमरुद या एक-एक पैसा परिक्रमा के अन्त में रखती रहें फिर यह सामग्री ब्राह्मणों को दान कर दी जाती है। (सोमवार व्रत की कथा)

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फिर धोबिन की माँग सिन्दूर से भरकर उसके ललाट में बिन्दी लगायी जाती है। उसके आँचल में कुछ मिष्ठान और पैसे डालकर व्रत करने वाली(व्रती) महिलाएँ उसके चरण स्पर्श करती है। तब वह धोबिन अपनी माँग का सिन्दूर उनकी माँग में लगा देती है और अपने ललाट की बिन्दी भी लगा देती है। इस तरह वह सुहागदान करती है। इससे सम्बन्धित यह कथा प्रचलित है।

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पौराणिक कथा:

पुरातन युग में एक घर में माता, बेटी और बहु तीन स्त्रियाँ थी। उस घर में भिक्षा हेतु एक साधू अक्सर आया करता था। जब बहु उसे भिक्षा देने जाती तो उसे यह आशीर्वाद दिया करता था, “दूधों नहाओ, पूतों फलो।” और जब कभी बेटी भिक्षा देने आती तो उसे यह आशीर्वाद मिलता, “धर्म बढ़े बेटी गंगास्नान।” एक दिन बेटी ने अपनी माता से कहा, “जो साधू भिक्षा के लिए हमारे द्वार पर आता है, वह भाभी और मुझे अलग-अलग आशीर्वाद देता है।” बेटी के मुख से इतना सुनकर माता ने कहा, “अच्छा, जब कल साधू आए तो मुझे बताना।”

अगले दिन नियत समय पर वही साधु आया। लड़की ने माता को बता दिया। उसने आकर साधू से पूछा, “महाराज। जो आप लड़की को आशीर्वाद देते हैं, उसका क्या मतलब है?” सुनकर साधू कुछ सोच में पड गया। कुछ देर बाद बोला, “तुम्हारी लड़की का सौभाग्य खंडित है।” “महाराज इसका कोई उपाय भी बताइए। माता ने खिन्न स्वर में कहा। साधू ने कहा, “तुम्हारे गाँव में एक धोबिन है, जिसका नाम सोमा है। यदि तुम्हारी लड़की उसके घर की टहल करे, उसके गधों को बांधने की जगह को रोज़ झाड़-बुहार कर साफ कर दिया करे तो उस पतिव्रता सोमा के आशीर्वाद से इसका सौभाग्य अटल हो सकता है।” (सोमवार व्रत की कथा)

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इतना कहकर और भिक्षा लेकर साधू चला गाय। माता ने साधू की सारी बातें बेटी को बता दीं। वह सोमा धोबिन की टहल के लिए तैयार हो गई और उसी दिन से वह अँधेरे में उसके घर जाकर गधों की लीद उठाकर फेंक आती और जगह साफ करके चली आती थी। धोबी-धोबिन को आश्चर्य था कि कौन आकर उनके गधों के स्थान को साफ कर जाता है? एक दिन सोमा धोबिन इस रहस्य को जानने के लिए छिपकर बैठ गई। जैसे ही लड़की गधों की लीद फेंक चुकी और झाड़ू लेकर सफाई करने लगी वैसे ही सोमा धोबिन ने उसका हाथ पकड़ लिया, कहा, “तू तो भले घर की लड़की दिखाई देती है फिर मेरे घर टहल करने के लिए क्यों आती है?”

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लड़की ने दुखी मन से साधू की सारी बातें सोमा धोबिन को बता दीं। इतना जान लेने के बाद सोमा धोबिन ने उस लड़की को आशीर्वाद देकर विदा किया। दोपहर के समय उसके घर जाकर बोली, “जब तुम्हारी लड़की का विवाह हो तब फेरे पड़ने के समय मुझे बुला लेना। मैं उसे अपना सौभाग्य दान कर दूँगी। इतना कहकर सोमा धोबिन अपने घर लौट आई। कुछ मास बाद जब लड़की के विवाह का समय आया तब उसकी माता ने सोमा धोबिन को निमंत्रण दिया। उसे पाकर सोमा विवाह में सम्मिलित होने के लिए चल दी। चलते समय अपने परिवार के लोगों को समझा गई कि अगर मेरे पति की मृत्यु हो जाए तो मेरे लौटने तक उसका दाह-संस्कार न करना। (सोमवार व्रत की कथा)

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लड़की के विवाहोत्सव में पहुँचकर जैसे ही सोमा धोबिन ने उस लड़की की माँग में सिन्दूर लगाया वैसे ही उसके पति का निधन हो गया। उसके परिवार के लोगों ने विचारा कि यदि सोमा आ जाएगी तो अधिक विलाप करेगी। सम्भव है कि उसके साथ ही कहीं चिता में बैठ जाए। इसलिए उसके लौटने से पहले ही जला देना चाहिए। यह सोचकर वह धोबी की अर्थी उठाकर श्मशान की ओर चल दिए। राह में उनकी भेंट लौटती हुई सोमा से हो गई। उसने पूछा, “यह किसकी अर्थी है?”

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एक धोबी ने बताया, “अरी, अभागिन। यह तेरे पति की ही पार्थिव देह है जिसे दाग देने के लिए श्मशान ले जा रहे हैं।” पास में ही पीपल का वृक्ष था। सोमा ने अपने पति की पार्थिव देह को वहीं पर रखने के लिए कहा। इस समय उसके हाथ में मिट्टी का एक पूरवा था जो उसे ब्याह के घर से मिला था उसने उसे तोड़कर एक सौ आठ टुकड़े किए। फिर अपने पतिव्रत धर्म का ध्यान और शिव पार्वती का स्मरण करते हुए पीपल के वृक्ष की एक सौ आठ बार परिक्रमाएँ कीं, तत्पश्चात् अपनी तर्जनी चीरकर रक्त पति की पार्थिव देह पर छिड़का तो वह जी उठा। उसी दिन की घटना से विवाहोत्सव पर धोबिन के सुहाग दान की प्रथा चली है।

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